कानपुर। गुरुवार 19दिसंबर 2024 (लेख/शिव शरण त्रिपाठी) सूर्य दक्षिणायन, पौष मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी, हेमंत ऋतु २०८१ पिंगल नाम संवत्सर। लोकतंत्र के मंदिर संसद से लेकर न्याय के शीर्ष मंदिर सुप्रीम कोर्ट तक का ध्येय वाक्य (मोटो) 'सत्यमेव जयते, 'यतो धर्म स्ततो जय: है। सत्यमेव जयते (सत्य की ही जीत होती है) मूलत: मुण्डक उपनिषद का सर्वज्ञात मंत्र 3-1-6 है और यह राष्ट्र की आत्मा संसद यानी भारत राष्ट्र का ध्येय वाक्य है।
'यतो धर्म स्ततो जय: (जहां धर्म है वहां जीत है) महा भारत में 'यत: कृष्णस्ततो धर्मो यतो धर्मस्ततो जय: से लिया गया है जोकि न्याय के शीर्ष मंदिर सुप्रीम कोर्ट का ध्येय वाक्य है।
सत्य की महिमा का इससे बड़ा उदाहरण हो भी क्या सकता है कि चार युगों में प्रथम युग का नाम ही 'सतयुग है जिसके प्रतिनिधि, द्यौतक और संवाहक सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र माने जाते हैं।
सर्वविदित है कि राजा हरिश्चन्द्र ने सत्य की रक्षा के लिये अपना राजपाट ही नहीं अपनी पत्नी व पुत्र तक को दंाव पर लगा दिया था।
समाज में आज भी उदारण स्वरूप राजा हरिश्चन्द्र का ही उल्लेख किया जाता है। अमूमन लोग कहते सुने जाते हैं कि क्या तुम हरिश्चन्द्र हो?
ऐसे महान देश में आज 'सत्य बोलना, 'सत्य उदघाटित करना, क्यों और कैसे अपराध बन चुका है। इस पर संवैधानिक संस्थाओं को गंभीरता से विचार ही नहीं करना होगा वरन् देश को बताना भी होगा कि आखिर इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव का गत 8 दिसम्बर को विश्व हिन्दू परिषद के एक कार्यक्रम में 'सत्य और केवल सत्य कहना कैसे अपराध हो गया?
ठीक है कि अभी सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति यादव के बयान पर कोई निर्णय नहीं लिया है लेकिन उसका न्यायमूर्ति यादव के बयान का स्वत: संज्ञान लेना भी अचम्भित करने वाला है।
इससे अधिक शर्मनाक और क्या हो सकता है कि सत्य की प्रतीक संसद में जिन ५५ माननीय सांसदों (राज्य सभा सदस्यों) द्वारा न्यायमूर्ति शेखर यादव पर महाभियोग चलाने का प्रस्ताव शुक्रवार को राज्य सभा के महासचिव को सौंपा गया क्या वे अपनी आत्माओं पर हाथ रखकर शपथपूर्वक कह सकते हैं कि सत्य के प्रतीक संसद में उन्होने कभी झूठ नहीं बोला है। यह भी कि क्या न्यायमूर्ति यादव के विरूद्ध उनका अभियोग प्रस्ताव संविधान बचाने के ध्येय के विपरीत सिर्फ और सिर्फ तुष्टीकरण की राजनीति भर करना नहीं है?
सवाल यह है कि आखिर न्यायमूर्ति यादव ने अपने सम्बोधन में झूठ/गलत कहा ही क्या था? सच तो यह है कि उन्होने जो कुछ कहा था वो सौ फीसदी सच और सत्य की प्रतीक संसद और न्यायपालिका की गरिमा बढ़ाने वाला है। वो सोये देशवासियों की आत्मा को झकझोरने वाला है।
यदि न्यायमूर्ति यादव के विरूद्ध किसी प्रकार की कोई कार्यवाही की जाती है तो वो नि:संदेह सच का गला घोटने के अलावा कुछ नहीं होगा। साथ ही वो इस बात का भी सबूत होगा कि देश के हिन्दुओं में अपने 'सनातन धर्म के प्रति न ही समर्पण भाव रह गया है और न ही सनातन धर्म के रक्षकों/पैरोकारों के प्रति समर्थन का जज्बा ही।
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