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काश! हम राष्ट्र भक्ति की सीख पारसी समाज से ले पाते

नयी दिल्ली। शनिवार 09नवम्बर 2024 (लेख) सूर्य दक्षिणायन, कार्तिक मास शुक्ल पक्ष अष्टमी, हेमंत ऋतु २०८१ पिंगल नाम संवत्सर। ७वीं शताब्दी में पारसियों के देश ईरान पर मुस्लिम आक्रांताओं के भीषण आक्रमण के बाद बड़ी संख्या में पारसी समाज के लोगों ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया था। जिन्होने ऐसा नहीं किया उन्हे अपना देश छोड़ना पड़ा था। 

उस संकट की घड़ी में जान बचाकर भागे पारसियों का एक समूह भारत के गुजरात में शरणार्थी के रूप में दाखिल हुआ था। अपने धर्म गुरू के नेतृत्व में पारसी समाज के लोगों ने वहां के तत्कालीन राजा से शरण देने की याचना की थी। राजा ने जहां उन्हे उनकी शर्तो पर शरण दी थी वहीं बदले में पारसी समाज के धर्म गुरू ने भी राजा को वचन दिया था कि वे आज से भारत में उसी तरह घुलमिलकर रहेगें जैसे दूध में शक्कर घुल जाती है। 

इतिहास साक्षी है कि पारसी समाज के लोग अपने धर्म गुरू के दिये गये वचन पर उम्मीद से कहीं अधिक खरे उतरे। इसका प्रमाण इसी से मिल जाता है कि पारसी समाज ने भारत की प्रगति में अतुलनीय योगदान दिया। कोई ऐसा महत्वपूर्ण क्षेत्र नहीं बचा जिसमें पारसी समाज ने सफ लता के झण्डे न गाड़े हो।

आज देश के शीर्ष उद्योगपतियों में इसी समाज के उद्योगपति अग्रणी स्थान पर रहकर देश का नाम रोशन कर रहे हैं। चाहे उद्योगपति टाटा समूह हो, चाहे गोदरेज समूह,चाहे वाडिया समूह हो और चाहे साइरस पूनावाला।

यही नहीं वो महान वैज्ञानिक पारसी समाज के डॉ० होमीजहांगीर भाभा ही थे जिन्होने भारत के नाभिकीय उर्जा कार्यक्रम की कल्पना की थी। देश के फि ल्म उद्योग में भी पारसी समाज का अप्रतिम योगदान रहा है। पारसी नाट्य कला की सबसे स्थाई विरासत मुंबई में स्थित हिन्दी फि ल्म उद्योग अथवा बालीवुड पर इसका जबरदस्त असर रहा है। बालीवुड फि ल्मों में सार रूप में मौजूद संगीत और नृत्य पर निर्भरता पारसी नाट्य कला की ही देन है।

वर्ष १९३१ में बनी भारत की पहली सवाक (बोलती फि ल्म) के निर्देशक अर्देशिर ईरानी और प्रसिद्ध अभिनेत्री अरूणा ईरानी पारसी समाज की ही देन है। प्रसिद्ध अभिनेता और निर्माता निर्देशक सोहराब मोदी पारसी ही थे जिन्होने हिन्दी की प्रथम रंगीन फि ल्म झांसी की रानी बनाई।

जहां तक राजनीति का प्रश्न है पारसी समाज ने भारतीय राजनीति में प्रभावी भूमिका निभाई है। पारसी समाज के दादा भाई नौरोजी दा ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया के नाम से मशहूर थे। वो इसी नाम से ब्रिटिश संसद में चुने गये थे। इण्डियन नेशनल कांग्रेस के सहसंस्थापक और अध्यक्ष फि रोजशाह मेहता पारसी ही थे। और तो और देश की प्रधानमंत्री रही श्रीमती इन्दिरा गाधी के पति राजनेता फि रोजगांधी (वास्तविक नाम फि रोज जहांगीर गेण्डी) पारसी समाज से ही आते थे।

यहीं नही ये देश के प्रति पारसी समाज की निष्ठा का ही परिणाम कहा जायेगा कि भारतीय सेना के सेना अध्यक्ष रहे पारसी समाज से आने वाले सैम मानेक शॉ (सैम बहादुर) ही देश के प्रथम 'फील्ड मार्शलÓ बनाये गये थे। तात्पर्य यह है कि पारसी समाज का राष्ट्र की प्रगति में उल्लखनीय योगदान रहा है। देश में महज 1 लाख से भी कम जनसंख्या वाले इस समाज ने भारत के प्रति जो राष्ट्रभक्ति, समर्पण दिखाया है वो हर भारतवासी के लिये एक नजीर है। 

कहना अनुपयुक्त न होगा कि अतिअल्पसंख्यक पारसी समाज ने कभी भी सरकार की मुफत योजनाओं का कोई लाभ नहीं लिया। उन्होने खुद अपनी तकदीर लिखी। ऐसे ही देश के अन्य अल्पसंख्यक समाज यथा जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सिख धर्म के अनुयाइयी भी है जिन्होने अपने बलबूते न केवल अपना साम्राज्य खड़ा किया वरन् देश की प्रगति में भी उल्लेखनीय योगदान दिया है। जबकि अल्पसंख्यक से बहुसंख्यक हो चले मुस्लिम समाज के लोग सभी सरकारी योजनाओं का भरपूर लाभ उठाने में पीछे नहीं है। किन्तु इस समाज के लोगों की देश के प्रति निष्ठा सदैव सवालों के घेरे में रही है। वे पाकिस्तान के मुसलमानों की तरह हिन्दुओं को ही अपना दुश्मन मानते रहे हैं।

किसी को बताने की जरूरत नहीं है कि कश्मीर घाटी में हिन्दुओं के नरसंहार और उन्हे खदेड़ने का काम यदि पाकिस्तान समर्थक आतंकियों ने किया था तो उसमें कश्मीर के मुसलमानों का योगदान भी कम नहीं था। यदि देश में भयावह दंगों के साथ संसद तक पर हमला बोला गया तो उसके विरोध में मुस्लिम समाज ने कभी आवाज नहीं उठाई। 

कभी लव जिहाद के नाम पर हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन कराने वाले तो कभी धर्म के नाम पर सर तन से जुदा का खुलेआम नारा लगाने ही नहीं निर्मम हत्या करने वाले भी क्या भारतीय मुस्लिम समाज के लोग ही नहीं है?

यही कारण है कि भारत राष्ट्र के प्रति इनकी निष्ठा व समर्पण निरंतर और संदिग्ध बनता जा रहा है। यह तो नहीं कहा जा सकता है कि देश का सम्पूर्ण मुस्लिम समाज राष्ट्र विरोधी अथवा सनातन धर्म विरोधी है किन्तु इस सच से भी कैसे इंकार जा सकता है कि जिस तरह देश में टुकड़े-टुकड़े गैंग की हरकतें बढ़ती जा रही है। जिस तरह हिन्दुओं की शोभा यात्राओं पर पत्थरबाजी, तोड़फोड़ और मूर्तियों को अपमानित करने आदि की घटनायें बढ़ती जा रही है। क्या वे हिन्दू समाज के लिये खुली चुनौती नहीं हैं?

ऐसे ही देश में अल्पसंख्यक ईसाई समाज के पादरी विदेशों से पैसे के बल पर देश के गरीब वर्ग का धर्म परिवर्तन कराने के साथ ही भारत को कमजोर बनाने का ही खेल खेलते नजर आते हैं।

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