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जो वर्तमान समय में संपूर्ण विश्व की मानव जाति के ऊपर एक बहुत बड़ी विपदा चल रही है ऐसे में मानव का जीवन अपार संकट से घिरा हुआ है लोग डरे हुए हैं हतोत्साहित हैं और अपनों को खोने का डर तो है ही परंतु उससे कहीं अधिक स्वयं की सुरक्षा को लेकर मन व्यथित है।
प्रकृति का दूसरा नाम संतुलन है क्योंकि प्रकृति का यदि हम अध्ययन करते हैं तो हम पाएंगे की प्रकृति में जो भी हमें दिख रहा है उस को संतुलित करने का एक चक्र बना हुआ है। हर जीव बनस्पति एक दूसरे पर आधारित है जैसे पेड़ों को हम देखें तो वह दिन में ऑक्सीजन देते हैं और रात को कार्बन डाइऑक्साइड अर्थात ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का प्रकृति में संतुलन स्थापित हो रहा है सूर्य का पूर्व से निकलना शाम को पश्चिम दिशा में अस्त होना ऋतुओं का समय से आना और जाता आदि सभी का एक क्रमबद्ध सुसज्जित संचालन होना यह सब प्रमाणित करता हैं कि इन सब को संचालित करने वाली कोई शक्ति तो है अब हम अपने जीवन पर ही देखें तो पाएंगे कि जीवन और मृत्यु का भी चक्र प्रकृति के द्वारा संचालित हो रहा है।
विज्ञान, अध्यात्म और प्रकृति के बीच में हमारा जीवन झूल रहा है एक तरफ विज्ञान ने बहुत ही उन्नत की है और वह विपरीत परिस्थितियों में भी अधिकांशतः जीवन बचाने में सफल रहती है परंतु मृत्यु पर सफलता नहीं मिल पाई है कहने का तात्पर्य है कि हमने विज्ञान की खोजों से अकाल मृत्यु से अकाल मृत्यु तक बहुत उन्नत की है परंतु मृत्यु का उपचार नहीं ढूंढ पाए हैं। सनातन धर्म के वेदों पुराणों में भी अकाल मृत्यु के उपचार विभिन्न प्रकार से बताए गए हैं परंतु अमरत्व को नकारा गया है। मनुष्य का शरीर नाशवान है हाड़ मांस का बना शरीर अमर नहीं हो सकता इसीलिए इस लोक का नाम मृत्युलोक है नाशवान शरीर का सबसे बड़ा कारण है प्रकृति का संतुलन।
कोविड-19 नामक रोग कैसे सृष्टि में आया किस नकारात्मक सोच के वैज्ञानिक की उत्पत्ति का फल है जिसे आज पूरी मानव जाति भोग रही है। मानव जाति के जीवन को सहज में समाप्त करने का चक्र प्रकृति के वातावरण में व्याप्त हो गया है। इस बीमारी को प्रकृति की विनाश लीला कहना उचित होगा क्योंकि प्रकृति संतुलन करती है और मानव जाति की अपार जनसंख्या अनियंत्रित हो रही है जिसका संतुलन प्रकृति अपने ढंग से करने लगी है। हमारा मानना है कि हम सभी प्रकृति के अधीन हैं और इस प्रकृति ने जनसंख्या नियंत्रण करने की ठान ली है। भारत सरकार जनसंख्या नियंत्रण पर कानून लाए या न लाए प्रकृत ने तो इस पर काम आरंभ भी कर दिया है।
इस बीमारी के प्रथम चरण में लॉक डाउन के कारण अधिकांश लोग सुरक्षित हो गए थे परंतु कोरोना के द्वितीय चरण का रूप अपनी उग्रता में आ गया है और वातावरण में व्याप्त है इसके संक्रमण की तीव्रता इतनी अधिक है कि 3 से 4 दिन में मानव शरीर के फेफड़े अपना कार्य करना बंद कर देते हैं और ऑक्सीजन की कमी के कारण दम घुट कर मौत हो रही है विज्ञान ने कितनी भी उन्नति कर ली पर ऐसी विषम परिस्थितियों को नियंत्रित करने के लिए समय चाहिए जबकि यह बीमारी के उग्र रूप ने समय सीमा को अल्प कर दिया है चारों तरफ हम और आपके सम्पर्क, जान-पहचान में आने वाले उन लोगों के मरने की सूचना से हम सभी दुखी हैं।
मौत प्रत्यक्ष नहीं आती वह कोई कारण लेकर ही आती है आज जो मृत्यु दर बढ़ती जा रही है उसमें कई कारण सामने आ रहे हैं जैसे कि अचानक अत्यधिक लोगों का एक साथ कोविड-19 से संक्रमित होना और उसी अनुपात में उपचार हेतु हॉस्पिटलों में संसाधन का न होना, फेफड़े के संक्रमण के लिए सभी को ऑक्सीजन की आपूर्ति समय से न मिल पाना, कॉविड के प्रोटोकॉल की कठिनता का गलत नियत के लोगों द्वारा दुरुपयोग, जीवन रक्षक दवाइयों को 4 से 10 गुना महंगा उपलब्ध होना, मृत्यु दर को गुणोत्तर बढ़ा रही है। वर्तमान समय में मनुष्यों की मानवता वाली सोच दिन पर दिन घटते जाना, आर्थिक युग में जीवन से अधिक महत्व धन को देना आदि ही मृत्यु के तांडव को आमंत्रित करता है।
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